रविवार, 26 जनवरी 2014

जीवन तू क्या है...




कल मैंने पूछा,
जीवन तू क्या है:
बेफिक्री मेरे बचपन की,
मस्ती मेरे यौवन की,
या आँख में बसा
धूआँ है;
जीवन तू क्या है---
मिलन की ख़ुशी,
बिछडन का दुःख,
या बस साथ चलने का
मजा है;
जीवन तू क्या है---
दौलत का उन्माद,
खिन्नता अभावों की,
या एक फकीराना
अदा है;
जीवन तू क्या है---
हौले-से पास के
मुझको गले लगा के,
जीवन यूँ मुस्कराया
और भेद ये बताया:
जीवन का राज ये है
बस हँस के जिए जाओ,
राहों में जो भी मिलता
उसको गले लगाओ,
कुछ कर सको तो कर दो
दुनिया किसी की रौशन,
यदि कर सको तो कर दो
तन-मन किसी पर अर्पण;
इतना ही तो है जीना
कि हर कोई हो जिन्दा,
छोड़ें जहाँ ये जिस दिन
करें मौत को शर्मिन्दा...