रविवार, 27 सितंबर 2009

कुछ लोग

चाहे कितने ही मेले जुटाएं,
चाहे लाख महफ़िल सजायें,
हर लम्हा तन्हा और अकेले
इस दुनिया रह जाते हैं
कुछ लोग...
दोस्त बन कर भी कहाँ
जुड़ पाते हैं
कुछ लोग...
जब साथ छोड़ कर चल देती है जिंदगी
हासिल कुछ भी नहीं
फ़क्त आवारगी,
फिर भी कहाँ
छोड़ पाते हैं जीना
कुछ लोग...

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

...?

कुछ लम्हे जो गुजर जाते हैं,
कुछ लोग जो हमसे
बिछड़ जाते हैं,
क्यूं याद आते हैं
इस तरह कि
फिर कुछ याद नहीं रहता...!
कभी वो लम्हे, वो लोग
फिर मिले तो
क्या याद रहेंगे...!!

शनिवार, 5 सितंबर 2009

क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल है...?

बहुत समय पहले दूरदर्शन पर एक सामाजिक संदेश आता था: 'जानवर बनना आसान हैं पर क्या इंसान बने रहना इतना मुश्किल है...?' उस समय मैं काफी कम उम्र का था किंतु उस संदेश की एक बात ने मुझे बहुत प्रभावित किया था कि विपरीत परिस्थितियों में भी हमें अपना मनुष्यत्व नहीं खोना चाहिए क्यूंकि यही हमें जानवर से अलग करता है। ३१ अगस्त, २००९ को कुछ ऐसा देखा कि यह संदेश बरबस याद हो आया। मैं मुंबई आ रहा था और हमारी ट्रेन नासिक रोड स्टेशन पर खडी हुई। मैं अपने कोच से उतर कर प्लेट्फ़ार्म पर काफी लेने आया। जब काफी लेकर पलता तो देखता हूँ कि मेरे कोच के एक सुवेशित सज्जन एक गरीब व्यक्ति को पीटने के लिए उद्यत हो रह थे और वह व्यक्ति भी उन्हें जबाब देना चाहता था किंतु उसे एक ६/७ वर्ष का बच्चा पीछे धकेल कर झगडे महिला भी एसी २। से नीचे एक प्रौदा महिला भी एसी-२ के कोच से नीचे उतरी और उस आदमी को जनरल डिब्बे की तरफ़ चलने के लिए कहने लेगी। मैंने अन्य लोगों से पता किया तो मालूम हुआ कि वह व्यक्ति यह नहीं समझ पा रहा था कि उसे जनरल डिब्बे में जाना चाहिए और शायद वो 'पीये हुए था' अतः मेरे कोच के वो अत्यन्त सभ्य दिखने वाले सज्जन उस पर अपनी वीरता का प्रदर्शन कर रहे थे। मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि जिसे मैं कल से ख़ुद नशे में धुत देख रहा हूँ (उन् सज्जन के पास जाने से ही शराब की जोरदार गंध आती थी) वो आज दूसरे को पीटना चाहता है क्यूंकि उसने शराब पी रखी है...? टी टी उसे ढंग से भी समझा सकता था कि उसे इस डिब्बे में बैठने की इजाजत नहीं है। क्या इंसान बने रहना उस स्थिति में इतना मुश्किल था...! मुझे उस आदमी की चिंता नहीं है और न ही उन सज्जन की। मुझे तो चिंता है उस छोटे बच्चे की जो आज अपने बड़े को झगडा करने से रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा रहा है। शायद उसके मन में हमारे इस समाज के लिए बहुत अच्छी भावनाएं न पनपें...अगर हम जानवर ही बनना चाहते हैं तो कम से आने वाली पीढी के सामने तो ऐसा न करें। मैं ये बिल्कुल नहीं कहता कि उस व्यक्ति को भी हमें सादर एसी-२ में स्थान दे देना चाहिए था किंतु जो प्रतिक्रिया लोगों द्बारा दिखाई गयी यदि उससे बचा जा सकता तो कहीं अधिक बेहतर होता...!