the dreamer
dreaming en route a better world...!
बुधवार, 5 सितंबर 2007
तुम...(9)
रग-रग में दौड़ती तेरी याद,
अब खौलने लगी है...
सहा नहीं जाता
अब ये ताप अंतस का...!
झुलस रहीं हैं कलियाँ सपनों की,
नेह-सोते सूखे सभी...
और
फैलता आ रहा एक मरुथल
मन में कहीं...!!
छा जाओ फिर से
बनकर गदराई बदरी
मेरे तन पर,
मन पर,
जीवन पर....!!!
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