मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

मैं...

वक्त की आँखों में छलक आयी आंसू की बूँद-सा मैं,
देख रहा हूँ समय की चाल,
जो भरता हुआ लंबे-लंबे डग
मुझसे परे जा रहा है...!

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

आंसू सा तुम्हें रखना उसे मंजूर नहीं था,
छलका के तुम्हें उसने रस्ते पे ला दिया।
वक्ते जुदाई तुम सुन नहीं सके कि वह कह के गया है-
" मैं लौट के आता हूं, तुम फूल बने रहना"