शनिवार, 21 जुलाई 2007

तूने मुझे क्या दिया रे मन...!

तूने मुझे क्या दिया रे मन...!
पराया दर्द,
पराई आस,
और उलझन...

अपना कुछ था नहीं,
पराया कोई रह नहीं,
शेष कुछ बचा नहीं...
हाथ आये तो बस
आंसू छलकाते नयन...!

दर्द सारी दुनिया का
तूने अपना कर लिया,
दुनिया-भर के आंसू दिल में
मोती-सा भर लिया,
अपनी खुशियाँ बाँट सबको
गया रिक्तपानि बन...!!

छोड़ कर सब चल दिए
राह में जो भी मिले,
तू सभी का हो गया
पर तू तेरा किसको कहे॥
साथ बस यादें रहीं
मकड़जाले बन...!!!

उम्र-भर छलता रहा
मुझको तू ओ मेरे मन...
व्यर्थ गया, व्यर्थ गया, व्यर्थ गया
ये जीवन...!!

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