गुरुवार, 13 नवंबर 2008

मन की बातें...!

काश हम पढ़ सकते एक-दूसरे का मन

कागज़ पर लिखी इबारत की तरह,

शायद तुम मुझे गले से लगा लेना चाहते तब,

शायद मैं तुम्हे देखना भी न चाहता...

कितना अच्छा है न कि हमारा मन कागज़ नहीं है...!

कोई टिप्पणी नहीं: