रविवार, 30 नवंबर 2008

मुंबई में आतंक

पूरी दुनिया साँस रोके देखती रही किस तरह हमारे जाबांज जवान आतंकवादियों का सफाया कर रहे थे मुंबई में। कितने लोग हताहत हुए, कितना नुकसान हुआ यह सब तो बाद की बात है...मुद्दा ये है कि हम इतने बेखबर कैसे हो जाते हैं कि कोई भी हमारे घर में घुसा चला आता है और हम चैन से सोये रहते हैं ...हमें जगाने के लिए दो-चार धमाके करने ही पड़ते हैं...!

मेरा अपना अनुभव है कि हमारी पुलिस फोर्स तो कत्तई इस तरह के हमले से निपटने लायक नहीं है। उनके पास न तो ऐसी ट्रेनिंग है और न ऐसे हथियार। और हमारी पुलिस फोर्स का एक बड़ा हिस्सा तो हमारे तथाकथित मान्यवरों की सुरक्षा में लगा रहता है जो अपने ही लोगों से असुरक्षित महसूस करते हैं...! पुलिस ट्रेनिंग को तरह से आधुनिक बनाने की जरूरत है। हमारे नेता ये कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं कि हम लोगों की एकजुटता को सलाम करते हैं। ठीक है कि लोग एकजुट हैं, पर आप क्या कर रहे हैं....?

मैं जानना चाहता हूँ हमारे नेताओं से कि वो दिन कब आएगा जब उन्हें प्रत्येक भारतवासी के जान अपनी जान जैसी ही कीमती लगेगी...? कब वो खुल कर कह सकेंगे कि अब अगर एक भी हिन्दुस्तानी का खून बहा तो हम आतंकियों और उन्हें शह देने वालों की ईंट से ईंट बजा देंगे...? कब इस देश में एक आम आदमी और एक राजनेता की जिंदगी एक समान कीमती समझी जायेगी...?

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