मैं गहरी सोच में हूँ: क्या भविष्य का कोई अस्तित्व वर्तमान में भी है...? कभी-कभी हमें होने वाली घटनाओं का पूर्वाभाष हो जाता है। इसका अर्थ ये हुआ कि जो होने वाला है उसका सूत्र पहले ही बुना जा चुका है। यह कुछ-कुछ उसी प्रकार है जैसे कोई आँखों पर पट्टी बाँध कर एक रस्सी को हाथ में ले महसूस करे...जिसका हाथ जितना लंबा होगा, वह उस रस्सी की उतनी ही अधिक लम्बाई को महसूस कर सकेगा। आँख खोलने पर भी उसे वह रस्सी दिखेगी क्यूँकि रस्सी का अस्तित्व हमारे महसूस करने की सीमा से कहीं अधिक है। ऐसे ही समय एक रस्सी जैसा हो सकता है जिसका अस्तित्व हमारे महसूस करने की सीमा से कहीं अधिक है। आँखें बंद कर रस्सी को महसूस करने वाला कभी-कभी अपने हाथों की लम्बाई की सीमा के परे भी जा सकता है, अगर रस्सी बीच से मोड़ दी जाई तो....! इसी प्रकार कभी-कभी हमारा मन समय को मोड़ उसके परे निकल जाता है। ऐसी दशा में वह जो महसूस करता है वो समय का वह अंश होता है जो अभी आना शेष है। यही पूर्वाभाष है।
अब थोड़ा आगे सोचते हैं...अगर हमने आने वाले समय को उसके आने से पहले-ही जान लिया तो क्या हम उसे बदल भी सकते हैं...! जैसे मैं देखा कि आने वाले समय में मेरे दोस्त की कलम उसके हाथ से छूट कर एक नदी में गिरने वाली है और ये कल ही होने वाला है। मैंने अपने दोस्त को ये बताया और उसने अगले दिन नदी की सैर पर जाने से पहले अपनी कलम घर पर ही छोड़ दी। जाहिर है अगर कलम है ही नहीं तो गिरेगी कैसे...? अगर मेरा दोस्त अपनी कलम गिरने से बचा पता है तो एक नया प्रश्न उठ खडा होता है: जो मैंने देखा था उसके अनुसार तो दोस्त की कलम इस समय नदी में होनी चाहिए थी किंतु ऐसा नहीं हुआ। अर्थात हमने आने वाले समय को बदल दिया...! एक बार फिर से रस्सी वाले उदाहरण की बात करें तो रस्सी का जो भाग हमने महसूस किया था, वो दरअसल है ही नहीं। तो फिर हमने उसे महसूस कैसे किया...? क्या एक बिन्दु के बाद रस्सी के दो अलग-अलग भाग हो जाते हैं...जिसमें से एक को मैंने महसूस किया और दूसरा फिर भी अनदेखा रहा...अगर मैंने भविष्य को देखने के बाद उसे बदल दिया तो वो भविष्य कैसे रहा...? दूसरी संभावना ये हो सकती है कि किसी प्रकार से मेरा देखा हुआ सच हो जाए। अर्थात मेरे दोस्त की कलम नदी में गिर ही जाए। इस संभावना में रस्सी तो ठीक-ठाक रहती है पर एक अलग प्रश्न खडा होता है: इस पूरे ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी हो रहा है और होने वाला है उसका खाका किसी ने पहले से ही खींच रखा है...! कोई शक्ति है जो समय को निर्धारित कर रही है, अब ये हमारे ऊपर है कि हम उस शक्ति को क्या नाम देते हैं।
पहले वाली संभावना जहाँ भविष्य को देखने के बाद उसव बदलने की गुंजाईश है यह इंगित करती है कि समय की कुछ समानांतर धाराएं हैं और अगर हममें सामर्थ्य है तो हम अपनी मनचाही धारा के समय को चुन सकते हैं...! इसका अर्थ ये भी है कि जिस ब्रह्माण्ड में हम हैं यह ही एक अकेला ब्रह्माण्ड नहीं है बल्कि ऐसे अनगिनत ब्रह्माण्ड मौजूद हैं...!
हम आगे पुन: चर्चा करेंगे इस प्रसंग पर...!
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