सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

समय का स्वरुप...! (२)

आज हम अपनी चर्चा को आगे बढाते हैं...
समय के स्वरुप की हमारी पिछली चर्चा में मैंने समय की जो संभावित अवधारणा सामने रखी थी उसके अनुसार समय ३-विमाओं से बना है, ठीक वैसे ही जैसे कोई रस्सी। लेकिन समय का यह स्वरुप अनेक प्रश्न खड़े कर रहा था भविष्य-दर्शन के बारे में। जो लोग भविष्य-दर्शन जैसी किसी संभावना से इनकार करते हैं, उनके लिए इसका दूसरा स्वरुप: समय के परे यात्रा (टाइम ट्रेवल)।
मैं समय के n-विमाओं वाले स्वरुप की बात सोच रहा हूँ...एक सरल उदाहरण: एक नदी में अथाह जल-राशि बह रही है। बाहर से देखने पर लगता है की ये सारा जल एक ही है...किंतु ऐसा है क्या...! नहीं। उस अथाह जल-धारा में अनेक छोटी-छोटी जल-धाराएं समाहित हैं। इससे प्रकार से समय भी है। समय की एक अथाह राशि में यह ब्रह्माण्ड तैर रहा है। या दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे अनेकानेक ब्रह्माण्ड तैर रहे हैं...technically, universes are embedded in the Time...टाइम ट्रेवल एक ब्रह्माण्ड से दूसरे में जाना है।
अब प्रश्न ये उठता है कि इन अनेकानेक ब्रह्माण्ड के बीच समय अलग-अलग कैसे बह रहा है। आख़िर क्या चीज है जिसने समय को स्वयं में समाहित कर रखा है, जैसे जल-राशि को नदी के दोनों पात बाँध कर रखते हैं। आख़िर जब सारी चीजें समय में ही समाहित हैं तो फिर इससे कौन बांधता है...? ये ठीक वैसी ही उलझन है जैसे एक ऐसे द्रव्य को रखने के लिए पात्र ढूढना जो सारी वस्तुओं को घोल देता है...! लेकिन समय के संदर्भ में एक उत्तर सूझ रहा है मुझे: समय को समय ही बांधता है। समय और समय की दो धाराओं के बीच अन्तर समय के बहने की गति का होता है। अत: अलग-अलग गतियों से बहकर और बंध कर समय ने अलग-अलग ब्रह्माण्ड ख़ुद में समाहित कर रखे हैं...!
समय के स्वरुप की ये अवधारणा उस समस्या का भी आंशिक हल दे दे रही है जिससे हमने समय के बारे में चर्चा शुरू की थी अर्थात भविष्य दर्शन की और उसे बदलने की। जब हम भविष्य देखते हैं तो दरअसल हम समय की एक दूसरी धारा में प्रवेश कर चुके होते हैं जो हमारी पुरानी धारा की तुलना में तेज गति से बह रही है।
लेकिन भविष्य को परिवर्तित कर पाना अभी भी मुझे सोचने पर मजबूर कर रहा है...
शेष चर्चा फिर कभी...!

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

कुछ और नहीं है क्या करने-कहने को? कविता ही लिखिए वही ठीक है।